purtgali kon the पुर्तगाल का इतिहास भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज एवं पुर्तगालियों का आगमन यद्पि 15 वी शताब्दी में भारत में वास्को डा गमा के आगमन से कई शताब्दी पूर्व यूरोपीय यात्री आते रहे थे, लेकिन केप ऑफ गुड़ हॉप होकर जब वास्को डा गमा 17 मई, 1498 में कालीकट पहुंचा, तो इसने भारतीय इतिहास की दिशा को गहरे रूप से प्रभावित किया।
पुर्तगालियों का मन्वय :
purtgali kon the पुर्तगाल का इतिहास पुर्तगालियों का स्पष्ट मंतव्य था की वे वयवसाय करने भारत आये थे लेकिन उनका छुपा हुआ अजेंडा था की इसे मत का प्रसार कर भारतीयों को ईसाइयत में परिवर्तित करना और अपने प्रतिध्वंदियों, विशेष रूप से अर्ब को बहार खदेड़ कर व्यापक रूप से मुनाफे वाले पूर्वी व्यापार पर एकाधिकार कायम करना। उस समय तक हिन्द महासागर के व्यापारियों का एकाधिकार था।
आगामी पंद्रह वर्षों में
- पुर्तग़ालियों ने अरब नोपोतों को पूरी तरह नष्ट कर दिया। उन्होंने उनके जहाजों को लूटा।
- उनपर आक्रमण किये, जहाजों को लूटा गया और अन्य दमनात्मक कार्रवाइयां की।
- पुर्तगालियों की सुदृढ़ स्थिति के परिप्रेक्ष में पुर्तगाल के शासक मेनुअल प्रथम ने
- 1501 में अर्ब, फारस और भारत के साथ व्यापार का स्वयं को मालिक घोषित कर दिया।
पुर्तगालियों के आगमन के समय भारत की स्थिति:
purtgali kon the पुर्तगाल का इतिहास भारत में पुर्तगालियों ने जिस समय आगमन किया, उसने पूर्वी व्यापार को हासिल करने में उनकी अत्यधिक मदद की।
- गुजरात के सिवाय, जहाँ शक्तिशाली महमूद बेगड़ा का शासन था,
- समस्त उत्तर भारत कई छोटी छोटी शक्तियों के बीच विभाजित था।
- दक्कन में, बहमनी साम्राज्य छोटे छोटे राज्य में बिखर गया।
- कोई भी शक्ति ऐसी नहीं थी जिसके पास नौसेनिक शक्ति हो।
- उन्होंने अपनी नौसेनिक शक्ति को विकसित करने के बारें में सोचा।
- सुदूर पूर्व में चीनी शासक की शासकीय डिक्री मात्र चीनी जहाजों की नोवाहनिया पहुँच तक सिमित थी।
- जहाँ तक अरब व्यपारियों और जहाजों के मालिकों का सबंद हैं,
- जिन्होंने पुर्तगालियों के आने से पूर्व तक हिन्द महासागर व्यापार पर वर्चस्व कायम किया हुआ था।
निष्कर्ष:
इस तरह से पुर्तगालियों की भारत में यात्रा आरंम्भ हुई और उनकी विस्तार निति धीरे धीरे फैलने लगी और राज्य का विघटन और विस्तार से आगमन के बारें में हम आगे पढ़ेंगे विस्तार से तो आप सभी जुड़े रहे और अधिक से अधिक पढ़ें।
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