मौर्य साम्राज्य का पतन के कारणों की खोज एक विवादस्पद मुद्दा रहा है Ι शुरवात में जहां पतन के कारणों में अशोक की शांति की निति‚ ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया आदि को माना गया वहीं बाद में अतिकेन्द्रीकरण जैसी अवधारणों पर भी बल दिया गयाΙ जिससे ज्ञात होता है की मौर्य साम्राज्य का पतन एक जटिल प्रक्रिया का परिणाम था तथा इसके लिए एक से अधिक कारण उतरदायी थे Ι
अशोक की धार्मिक निति
- मौर्य साम्राज्य का पतन हेतु हरिप्रशाद शास्त्री ने इस अशोक की इस निति को एक मुख्य कारण बताया की यह निति बौद्धों की पक्ष और ब्राह्मणों के अधिकार व उनकी सामाजिक स्थिति पर कुठारघात करती थी और जिसका परिणाम पुष्यमित्र का विद्रोह Ι
- परन्तु वहीं हेमचन्दर रायचौधरी ने कहा है की अशोक ने कभी भी ने तो पशुबलि पर पूर्ण प्रतिबंद लगाया और न ही धमपात्रो के दायितवो में ऐसा कोई उल्लेख मिलता है जिसे ब्राह्मण विरोधी कहा जायेΙ
- साथ ही जो अधिकार राजुकों को दिये गये थे वे ब्राह्मणों के अधिकारों पर आघात करने हेतु नहीं बल्कि ये दंडविधान को लोकहित और अधिक मानवीय बनाने के उद्देश्यो से प्रेरित थेΙ
अशोक की शांतिप्रिय तथा अहिंशा की निति
- मौर्य साम्राज्य का पतन हेतु हेमचन्दर रायचौधरी ने इस निति को मुख्य कारण बताया जैसे की कलिंग युद्ध के बाद अशोक द्वारा युद्ध विजय की निति को त्यागकर धमविजय की निति को अपनाना इससे सेना के मनोबल कमजोर होनाΙ
- वहीं नीलकंठ शास्त्री का मानना है की अशोक ने कभी भी सेना को भंग नहीं किया थाΙ और अशोक ने अपनी निति को भी एक सीमा के अंदर नियंत्रित रखा जिसका प्रणाम 13 वें शिलालेख में मिलता है जिसमें अशोक ने आटविक जातियों को चेतावनी दी है Ι
अशोक के दुर्लभ उतराधिकारी
- अशोक के बाद ही मौर्य साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया था और लगभग 50 वर्षों के अंदर ही इस साम्राज्य का अंत हो गया था Ι
- अंतिम मौर्य साम्राज्य व्रह्दथ की हत्या कर पुष्यमित्र शुंग ने शुंग साम्राज्य की नींव रखी Ι
- रोमिला थापर द्वारा माना गया की अगर अधिकारी सिक्षित व उनकी नियुक्ति प्रतियोगिता के आधार पर होती तो वें राजनितिक हलचल की बीच शांति व व्यवस्था बनाये रखने में समर्थ हो सकते थे Ι
- परन्तु वहीं अर्थशास्त्र में यहे ज्ञात है की सभी ऊंच कर्मचारी योग्यताओं के आधार पर नियुक्त होते थे और जो यह पद्ति मौर्य काल में थी वह प्राचीन और मध्यकालीन भारत में कहीं नहीं पायी जाती थी Ι
साम्राज्य के अंतर्गत अर्धस्वतंत्र राज्यों की भागीदारी
- इसके अन्तरगर्त निम्न अर्धस्वतंत्र राज्य थे जैसे की यवन‚ काम्बोज‚ भोज‚ आटविक राज्य आदि ये केंद्रीय सत्ता के कमजोर होते ही स्वतंत्र हो गयेΙ
- इससे मौर्य साम्राज्य का पतन के विघटन को और अधिक बल मिला Ι
आर्थिक कारण
- अशोक की दानशीलता जिसमें बौद्ध मठो और भिक्षुओं को धनराशि दान में देना जिसकी पुष्टि दिव्यावदान से होती है जिससे शासन व्यवस्था और सैन्य संगठन का कमजोर होना Ι
- आहत सिक्कों में मिलावट का प्राप्त होना जिससे संकेत मिलता है की अर्थव्यवस्था अशोक की बाद कमजोर हो गयी थी जिसने भी मौर्य साम्राज्य का पतन में एक अहम भूमिका निभाई Ι
कला में विदेशी स्त्रोत का आगमन
- नीहार रंजन राय ने मौर्य साम्राज्य का पतन में इसको एक प्रमुख कारण माना की साँची और भरहुत कला लोक परम्परा के अनुकूल व भारतीय है परन्तु मौर्य कला इस कला से भिन है व यह विदेशी कला से प्रभावित है जिसके कारण भी जनसाधरण का विद्रोह हुआ Ι
- विद्रोह का दूसरा कारण अशोक द्वारा समाजों का निषेद्य जिससे जनता भी अशोक के विरुद्ध हो गयी Ι
मौर्यकालीन राजनितिक व्यवस्था में राज्य की कल्पना का अभाव
राज्य वह सत्ता है जिसके प्रति व्यक्ति की शासन व समाज से परे पूर्ण निष्ठा या भक्ति रहती है Ι
अगर यह माना जाये की मौर्य युग में राज्य की कल्पना नहीं थी तो यूनान की अतिरिक्त विश्व में प्राचीन तथा मधयकाल में राज्य की ऐसी सकल्पना नहीं पायी जाती जहां राज्य , राजा तथा समाज से ऊपर हो और जिसके प्रति व्यक्ति की, राजा तथा समाज की अपेक्षा, अधिक निष्ठा हो Ι