ब्राह्मण साम्राज्य का इतिहास | Brahmin kingdom | अंतिम मौर्य शासक वृहदरथ की हत्या कर मगध पर मौर्य शासन को समाप्त कर पुष्यमित्र शुंग ने एक नए राजवंश जिसे शुंगवंश कहा जाता है‚ की नींव डाली थी और इसी के साथ ब्राह्मण साम्राज्य का उदय हुआ Ι
ब्राह्मण साम्राज्य का इतिहास
पुष्यमित्र शुंग(185 ईस्वी पूर्व – 149 ईस्वी पूर्व ), जिसने मगध पर शुंग वंश की नीव डाली, ब्राह्मण जाती का था, और इसके प्रमाण अनेक स्रोतों से प्राप्त होते है जैसे की ∴
- मालविकागिनमित्रं ग्रंथ जिसकी रचना कालिदास ने की में पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमत्र को बैबिक वंशीय और कश्यप गोत्र से सम्बन्दित मन है Ι
- लामा तारनाथ ( तिब्ती इतिहासकार ) द्वारा भी शुंगों को ब्राह्मण व पुष्यमित्र शुंग को ब्राह्मण राजा माना है Ι
- पुराण‚ हर्षचरित तथा मालविकागिनमित्रं सभी में पुष्यमित्र शुंग के लिए ″सेनानी” अर्थात सेनापति की उपाधि का प्रयोग मिलता है और वहीं पुष्यमित्र शुंग ने भी सेनानी के नाम से शासन किया था Ι
केंद्रीय नियंत्रण की स्थापना
- परवर्ती मौर्यों के निर्बल शासन से मगध पर आंतरिक तथा बाहय संकटों का खतरा देखते हुए पुष्यमित्र शुंग ने मगध पर अधिकार जमाकर इसके विघटन को रोकाΙ
- दूरस्थ प्रदेशों पर सुगमतापूर्वक नियंत्रण रखने हेतु अवन्ति राज्य में स्तिथ विदिशा नगर को दूसरी राजधानी बनाई Ι
- स्वय पाटलिपुत्र से शासन करने के साथ साथ‚ कोसल में भी राजा का एक प्रतिनिधि “एक उपराजा” के रूप में नियुक्त किया Ι
- मौर्य साम्राज्य के अवशेष पर स्थापित विदर्ब राज्य के शासक यघसेन को भी अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया Ι
- यवनो के आक्रमण को भी पीछे ढकेलने में भी और मगध तक बढ़ने से रोकने में पुष्यमित्र को काफी हद तक सफलता प्राप्त हुई Ι
- पुष्यमित्र ने पंजाब के जालंधर और स्यालकोट एंड साकल पर भी विजय प्राप्त की ( दिव्यावदान तथा तारनाथ के विवरण से प्राप्त जानकारी ) Ι
- पुष्यमित्र को बोध धर्म को कट्टर दुश्मन माना गया है Ι
इस्लाम धर्म का इतिहास
प्रसासन
- पुष्यमित्र के साम्राज्य की सीमा दक्षिण में नर्मदा नदी तक थी Ι
- प्रसासन का सवरूप राजतंत्रात्मक था जिसमें राजा ही सत्ता का प्रधान होता था Ι
- साम्राज्य को विभिन प्रसासनिक हिस्सों में बाटना जैसे की साम्राज्य के विभिन भागों में राजकुमार अथवा राजकुल से संबंधित व्य्कतियों को राजपाल नियुक्त करना Ι
- शासन को सचारुरुप से चलाने हेतु एक मंत्रिपरिष्द होती थी , जिसे अमात्ये परिषद भी कहा जाता थाΙ
- एक सुविकसित न्याय प्रणाली थी जिसकी जानकारी मनुस्मृति से भी प्राप्त होती है Ι
- प्रसासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम सभा, जिसको ग्रामीण क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाये रखनी थी Ι
- कृषि के प्रसार में निजी व्यक्ति की भूमिका पर विशेष बल दिया जाता था Ι
पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी ∴
- अग्निमित्र ∴जिसको शासक की उपाधि मिली थी को विदिशा में उपराजा के रूप
- भागवत∴ इस वंश का सबसे महतव्पूर्ण शासक, इसने 32 वर्षो तक शासन किया, इसके राज्यकाल की महत्वपूर्ण घटना तकशिला के यूनानी शासक एण्टियलसीदास ले राजदूत हेलियोड़ोष का शुंग दरबार में आगमन , इसके द्वारा विदिशा ( बेसनगर ) में गरुड़ध्वज की स्थापना करवाई Ι
- देवभूति या देवभूमि ( अंतिम शुंग शासक )∴ इसके अमात्ये वासुदेव ने लगभग 75 ईस्वी में इसकी हत्या कर मगध में कणव राजवंश की स्थापना Ι
- ब्राह्मण साम्राज्य के विकास में दूसरा महतवपूर्ण वंश – कवण वंश (75 ईस्वी पूर्व -30 ईस्वी पूर्व )-
- इस वंश के शासक – वासुदेव, भूमिमित्र( भुमित्र ), नारायण और सुशर्मन
- वैदिक धर्म और संस्कृति सरंक्षण की परम्परा इस वंश में भी कायम रही Ι
- इस वंश के अंतिम शासक सुशर्मन को मारकर ” सिमुक ” ने ऊपरी दखण में आंद्र सातवाहन वंश की स्थापना कीΙ
नोट: सातवाहन राज्य ने उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सेतु का काम किया।
निष्कर्ष:
ब्राह्मण साम्राज्य का आरम्भ मगध राज्य के साथ आरम्भ हुआ परन्तु कुछ आपसी मतभेदोंऔर अनुयोग्य शासको के कारण उच्च राज्य का भी विघटन होता गया और इनके पश्चात दो राजनितिक शक्तियो का उदय हुआ – ऊपरी दकन में आंध्र सातवाहन तथा कलिंग में चेदि वंश Ι