भारत में अपूर्ण रियल एस्टेट परियोजनाएँ

भारत में अपूर्ण रियल एस्टेट परियोजनाएँ हाल ही में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा गठित नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत की अध्यक्षता वाली एक समिति ने भारत में लिगेसी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स के स्थगित होने/रोके जाने के मुद्दे को हल करने के लिये कई सिफारिशें पेश की हैं।

केंद्रीय सलाहकार परिषद ने

  •  रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 के तहत एक समिति के गठन की सिफारिश की थी।
  • भारतीय बैंक संघ के अनुसार, भारत में चिह्नित किये गए 4.12 लाख आवास परिसरों में से लगभग 2.4 लाख जो कि ज़्यादातर नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हैं, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में हैं।

प्रमुख सिफारिशें:

  • भारत में अपूर्ण रियल एस्टेट परियोजनाएँ अपूर्ण परियोजनाओं के लिये मॉडल पैकेज:
  • नोएडा और ग्रेटर नोएडा से शुरू होकर विशिष्ट क्षेत्रों में रुकी हुई परियोजनाओं के लिये डिज़ाइन किये गए।
  • इसके तहत अन्य राज्यों को अपने इसी प्रकार की रुकी हुई और
  • अपूर्ण परियोजनाओं के अनुरूप समान पैकेज विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया गया है।
  • मॉडल पैकेज के प्रमुख घटकों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
शून्य अवधि (ज़ीरो पीरियड):
        • शून्य अवधि की अवधारणा कोविड-19 महामारी और
        • अदालती आदेशों जैसे कारकों के कारण होने वाले व्यवधानों को संदर्भित करती है।
        • इस अवधि के दौरान डेवलपर्स की उन अप्रत्याशित चुनौतियों को स्वीकार करते हुए
        • ब्याज और ज़ुर्माना भुगतान से छूट दी जाएगी, जिनके कारण परियोजनाओं में देरी हो सकती है।
आंशिक समर्पण नीति:
        • मॉडल पैकेज में आंशिक समर्पण/सरेंडर नीति का समावेश किया गया।
        • डेवलपर्स को परियोजना से जुड़ी भूमि का एक हिस्सा सरेंडर करने का विकल्प दिया गया था।
        • इसका उद्देश्य संसाधन उपयोग को अनुकूलित करते हुए परियोजना प्रबंधन और
        • निष्पादन में लचीलापन प्रदान करना है।
रियायती ब्याज दरें:
    • MSME क्षेत्र को लाभ पहुँचाने वाली \\\”रियायती ब्याज दरें अथवा गारंटीकृत योजना\\\” का सुझाव।
    • इसे रुकी/ठप हुई रियल एस्टेट परियोजनाओं के लिये धन उपलब्ध कराने हेतु
    • वित्तीय संस्थानों को प्रोत्साहित करने के लिये डिज़ाइन किया गया था।
    • इसका उद्देश्य रुकी हुई परियोजनाओं से जूझ रहे डेवलपर्स के लिये तरलता और
    • वित्तपोषण तक पहुँच में सुधार करना है।
\\\”गारंटीकृत फंड\\\” की स्थापना:
    • इसका उद्देश्य रियल एस्टेट क्षेत्र में वित्तीय सहायता और निवेशकों का विश्वास बढ़ाना है।
    • MoHUA को फंड योजना का मसौदा तैयार करने और
    • इसे वित्त मंत्रालय को अग्रेषित करने का कार्य सौंपा गया है।
फास्ट-ट्रैक NCLT बेंचों का विस्तार:
    • समिति ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) में पाँच अतिरिक्त फास्ट-ट्रैक बेंच बनाने का भी सुझाव दिया है ताकि
    • उन सभी लंबित रियल एस्टेट मामलों को \\\”प्राथमिकता के आधार\\\” पर निपटाया जा सके जो दिवाला और
    • दिवालियापन संहिता (IBC) के अंतर्गत आते हैं।
रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016:
  • रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (RERA):
  • अधिनियम प्रत्येक राज्य में RERA की स्थापना का प्रावधान करता है, जो
  • नियामक निकायों और विवाद समाधान मंचों के रूप में कार्य करता है।
अनिवार्य पंजीकरण:
    • न्यूनतम 500 वर्ग मीटर के प्लॉट या आठ अपार्टमेंट वाली सभी रियल एस्टेट परियोजनाओं को लॉन्च करने से पहले RERA के साथ पंजीकृत होना चाहिये।
    • इसका उद्देश्य परियोजना विपणन और निष्पादन में पारदर्शिता बढ़ाना है।
पारदर्शिता और डेटाबेस:
    • RERA अपनी वेबसाइट्स पर पंजीकृत परियोजनाओं का एक सार्वजनिक डेटाबेस बनाए रखता है।
    • इसमें परियोजना विवरण, पंजीकरण स्थिति और चल रही प्रगति, खरीदारों हेतु पारदर्शिता प्रदान करना शामिल है।
निधि प्रबंधन:
    • फंड डायवर्ज़न को रोकने हेतु प्रमोटर्स को विशिष्ट परियोजना के निर्माण और भूमि लागत के लिये
    •  एकत्रित धन का 70% एक अलग एस्क्रो खाते में जमा करना आवश्यक है।
समयबद्ध निर्णय:
    • अपीलीय न्यायाधिकरणों को 60 दिनों के भीतर मामलों का निपटारा करने का आदेश दिया गया है,
    • जबकि नियामक अधिकारियों को उसी समय सीमा में शिकायतों का समाधान करना चाहिये,
    • ताकि विवाद का तेज़ी से समाधान सुनिश्चित हो सके।

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