चीन की आर्थिक मंदी

चीन की आर्थिक मंदी यह एडिटोरियल 20/08/2023 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘China is slowing. What does it mean for India?’’ लेख पर आधारित है। इसमें चीन की आर्थिक वृद्धि की गति धीमी होने और इस परिदृश्य से भारत के लिये उत्पन्न हो रहे संभावित अवसरों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

PLI (उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन), मुद्रास्फीतिGDP, भारत के व्यापार समझौते, GSTप्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)

मेन्स के लिये:

  • चीन की आर्थिक मंदी और भारत के लिये अवसर, भारत द्वारा इस दिशा में उठाए गए कदम इसको चीन के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

चीन द्वारा पिछले तीन वर्षों से

  • क्रियान्वित शून्य कोविड नीति (Zero Covid Policy) के बाद इस वर्ष उम्मीद की जा रही थी कि
  • उसकी अर्थव्यवस्था में पुनः सुधार आएगा। लेकिन नवीनतम आर्थिक आँकड़ों से पता चलता है कि
  • विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अपस्फीति की स्थिति में है।
  • खुदरा बिक्री और औद्योगिक उत्पादन, दोनों ही अनुमानित अपेक्षाओं से कम रहे हैं।
  • सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि घरेलू मांग घटती जा रही है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-आधारित मुद्रास्फीति (Consumer Price Index-based inflation) में गिरावट के साथ
  • अपार्टमेंट और कई अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में गिरावट आई है।

इस मंदी हेतु उत्तरदायी कारण:

  • शून्य कोविड रणनीति: अपनी सीमाओं के भीतर कोविड-19 मामलों के उन्मूलन के लिये
  • चीन द्वारा अपनाई गई नीति से बार-बार लॉकडाउन एवं यात्रा प्रतिबंध की स्थिति बनी।
  • इसने वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भी एक उथल-पुथल पैदा कर दी।
  • इस परिदृश्य के साथ ही भू-राजनीतिक तनावों ने विनिर्माण स्थानांतरण
  • (विदेशी कंपनियों द्वारा अपने विनिर्माण का चीन से बाहर अन्य देशों में स्थानांतरण) को प्रेरित किया,

जिससे घरेलू विकास एवं उपभोक्ता व्यय में और गिरावट आई।

  • औद्योगिक उत्पादन में गिरावट: जुलाई 2023 में मूल्यवर्द्धित औद्योगिक उत्पादन में (Y-O-Y) 3.7% की वृद्धि दर्ज की गई,
  • जो जून माह में 4.4% की वृद्धि दर की तुलना में मंद थी।
  • गिरता निर्यात: जुलाई 2023 में चीन के निर्यात में एक वर्ष पहले की तुलना में 14.5% की गिरावट आई,
  • जबकि आयात में 12.4% की गिरावट आई।
बढ़ती बेरोज़गारी:
  •  जबकि जुलाई 2023 में कुल बेरोज़गारी दर बढ़कर 5.3% हो गई,
  • जून माह में युवा बेरोज़गारी रिकॉर्ड 21.3% के स्तर पर पहुँच गया।
  • आवास क्षेत्र का पतन: चीन की अर्थव्यवस्था इस समय विश्वास के संकट का सामना कर रही है।
  • कई कारकों के योग से यह परिदृश्य बना हुआ है।
  • इनमें से एक प्रमुख कारक है दशकों से ऋण से समर्थित आवास क्षेत्र (Housing Sector) का लगभग पतन हो जाना,
  • जो चीन के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% का योगदान देता है।
ऋण का बोझ:
  •  चीन की तेज़ आर्थिक वृद्धि को कुछ हद तक भारी उधारी से बढ़ावा मिला था।
  • इससे अर्थव्यवस्था में भारी मात्रा में ऋण जमा हो गया है,
  • जिसका यदि सावधानी से प्रबंधन नहीं किया गया तो संभावित रूप से भविष्य के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • चीन का ऋण वर्तमान में इसके सकल घरेलू उत्पाद का 282% होने का अनुमान है, जो कि अमेरिका से अधिक है।
टेक उद्योग पर नियंत्रणकारी कड़ी कार्रवाई:
  • चीन की सरकार ने अपने जीवंत
  • टेक सेक्टर (वीडियो गेमिंग, एडटेक, ई-कॉमर्स आदि) पर इस आधार पर नियंत्रणकारी कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी कि
  • टेक कंपनियाँ विशाल और शक्तिशाली होती जा रही थीं।
  • इसके परिणामस्वरूप राजस्व और रोज़गार का भारी नुकसान हुआ,
  • क्योंकि इनमें से कई कंपनियों को अपना आकार छोटा करना पड़ा या अपना संचालन बंद करना पड़ा।
निवेश और उपभोक्ता व्यय में गिरावट:
  •  गिरावटपूर्ण और अनिश्चित आर्थिक माहौल के बीच,
  • चीन के निवेशक अपने व्यय में कटौती कर रहे हैं, जिससे अपस्फीति की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
    • चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (NBS) के अनुसार,
    • जुलाई 2023 में खुदरा बिक्री 2.5% (Y-O-Y) की दर से बढ़ी, जबकि जून माह में यह 3.1% रही थी।
संरचनात्मक बदलाव:
  •  चीन अपनी अर्थव्यवस्था को निर्यात एवं निवेश पर निर्भरता से एक अधिक
  • संतुलित मॉडल की ओर ले जाने का प्रयास कर रहा है जहाँ घरेलू व्यय एवं नवाचार पर अधिक बल दिया गया है।
  • यह संक्रमण चुनौतीपूर्ण रहा है और इसके परिणामस्वरूप विकास दर कम हुई है, साथ ही ऋण एवं वित्तीय जोखिम भी बढ़े हैं।
अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध:
  •  चीन और अमेरिका के बीच व्यापार तनाव वर्ष 2018 से बढ़ गया है
  • जिसके परिणामस्वरूप टैरिफ, प्रतिबंध और डिकम्प्लिंग जैसे उपाय किये गए हैं,
  • जिसने दोनों ही पक्षों को नुकसान पहुँचाया है। इस व्यापार युद्ध (Trade War) ने चीन के निर्यात,
  • निवेश और प्रमुख प्रौद्योगिकियों एवं बाज़ारों तक उसकी पहुँच को प्रभावित किया है।
    • इसने उपभोक्ताओं और व्यवसायों के भरोसे को कम किया है, साथ ही चीन की मुद्रा के मूल्य को भी कमज़ोर कर दिया है।

इस मंदी को लेकर वैश्विक बाज़ार में चिंताएँ: 

  • IMF ने पूर्व में अनुमान लगाया था कि इस वर्ष वैश्विक विकास में चीन की हिस्सेदारी 35% होगी,
  • लेकिन अब यह दूर की कौड़ी लग रही है।
  • नवीनतम आँकड़ों से उजागर होता है कि चीन को इस वर्ष के लिये निर्धारित
  • लगभग 5% के विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में संघर्ष करना पड़ सकता है।
    • चीन की आर्थिक मंदी चीन में मंदी का असर वैश्विक मांग पर पड़ेगा।
    • चीन न केवल विश्व की सबसे बड़ी विनिर्माण अर्थव्यवस्था है बल्कि यह प्रमुख वस्तुओं का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
      • यह विश्व के धातु उपभोग में लगभग 50% की हिस्सेदारी रखता है।
भारत के लिये उपलब्ध अवसर: 
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाना: कई देश और कंपनियाँ कच्चे माल,
  • मध्यवर्ती वस्तुओं एवं तैयार उत्पादों—विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा और
  • ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में, के स्रोत के रूप में चीन के किसी विकल्प की तलाश कर रहे हैं।
    • अपने विशाल घरेलू बाज़ार, कुशल कार्यबल, निम्न श्रम लागत और
    • अवसंरचना में सुधार के साथ भारत में इन उद्योगों के लिये एक पसंदीदा गंतव्य बन सकने की क्षमता है।
    • भारत वैश्विक बाज़ारों तक अपनी पहुँच को बढ़ाने के लिये अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और
    • यूरोपीय संघ जैसे देशों/संघों के साथ अपने मौजूदा व्यापार समझौतों और
    • रणनीतिक साझेदारियों का भी लाभ उठा सकता है।
विदेशी निवेश को आकर्षित करना: 
  • चीन की आर्थिक मंदी ने विदेशी पूंजी के लिये
  • निवेश स्थल के रूप में भी इसके आकर्षण को कम कर दिया है।
  • भारत एक स्थिर एवं अनुकूल कारोबारी माहौल प्रदान कर, नियामक बाधाओं को कम कर,
  • कर प्रोत्साहन प्रदान कर और भूमि अधिग्रहण एवं श्रम सुधारों को सुविधाजनक बनाकर इस अवसर का लाभ उठा सकता है।
    • भारत विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिये आईटी, डिजिटल सेवाओं, नवीकरणीय ऊर्जा,
    • जैव प्रौद्योगिकी और रक्षा उत्पादन जैसे क्षेत्रों में भी अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन कर सकता है।
नवाचार, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: 
  • चीन की आर्थिक मंदी ने नवाचार और
  • अनुसंधान एवं विकास के मामले में भी इसकी कमज़ोरियों को उजागर किया है,
  • विशेष रूप से सेमीकंडक्टर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव प्रौद्योगिकी और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में।
    • भारत अपने स्वयं के नवाचार और अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में अधिक निवेश कर शिक्षा जगत,
    • उद्योग एवं सरकार के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर और
    • उद्यमिता एवं जोखिम लेने की संस्कृति का निर्माण कर इस अवसर का लाभ उठा सकता है।
    • भारत अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों और समाधानों को विकसित करने के लिये अपने इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और
    • शोधकर्ताओं के प्रतिभा पूल का भी लाभ उठा सकता है जो वैश्विक मंच पर चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं।
भारत के निर्माताओं के लिये लाभ:
  • कमोडिटी बाज़ार, चीन की मांग के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं।
  • यदि चीन सुस्त मांग के कारण बेस मेटल और
  • अन्य वस्तुओं का कम मूल्यों पर निर्यात करना शुरू कर देता है तो इससे हमारे निर्माताओं को लाभ प्राप्त हो सकता है।

चीन की मंदी का लाभ उठाने के लिये भारत की पहल: 

  • निर्यात में विविधता लाना: अन्य देशों में अपने निर्यात को बढ़ाना,
  • विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ चीन अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता खो रहा है।
  • उदाहरण के लिये, पिछले कुछ माह में भारत की इंजीनियरिंग वस्तुओं, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स और
  • चीन की आर्थिक मंदी कपड़ा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करना:
  •  उन कंपनियों से अधिकाधिक FDI आकर्षित करना जो चीन के बदले वैकल्पिक गंतव्यों की तलाश कर रहे हैं।
  • भारत ने अधिक निवेशकों को आकर्षित करने के लिये अपने FDI मानदंडों को आसान बनाया है,
  • प्रोत्साहन (incentives) की पेशकश की है और अपनी कारोबार सुगमता रैंकिंग में सुधार किया है।
    • निवेश को आकर्षित करने के लिये भारत ने बिजली (जैसे बिजली (संशोधन) नियम, 2023),
    • भूमि (जैसे भूमि बैंक) और श्रम (श्रम कोड को संहिताबद्ध करना) में भी सुधार किये हैं।
  • घरेलू विनिर्माण और उपभोग को बढ़ावा देना: उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना,
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान और जीएसटी सुधार जैसी
  • विभिन्न योजनाओं एवं नीतियों के माध्यम से अपने घरेलू विनिर्माण एवं उपभोग को बढ़ावा देना।
  • इन पहलों का उद्देश्य भारत को अधिक आत्मनिर्भर और बाहरी आघातों के प्रति प्रत्यास्थी बनाना है।
  • आर्थिक और रणनीतिक गठबंधनों का निर्माण करना: चीन के प्रभाव एवं आक्रामकता का मुकाबला करने के लिये (विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में)
  • अन्य देशों के साथ अपने रणनीतिक एवं आर्थिक संबंधों को बढ़ाना।
  • भारत ने क्षेत्रीय सहयोग एवं स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये क्वाड (QUAD) और
  • ब्रिक्स (BRICS) जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों एवं वार्ताओं में भाग लिया है ।

निष्कर्ष:

भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक प्रमुख हितधारक के रूप में और एक ‘मैन्युफैक्चरिंग हब’ के रूप में चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की उम्मीद कर रहा है।

इसने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये PLI जैसी योजनाओं का अनावरण किया है। यदि चीन के निर्यात में कमी आती है तो भारत की ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति को बढ़ावा मिल सकता है।

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